VPN क्या है? VPN काम कैसे करता है? Full Information In Hindi

क्या आप ऑनलाइन security को लेकर परेशान रहते है? क्या आपको भी लगता है की आपकी पर्सनल जानकारियां h@cker के हाथ लग जाएगी? और क्या आप अपने email, ऑनलाइन शॉपिंग के bills पेमेंट को secure रखना चाहते है? अगर हां तो ऐसा करना संभव है VPN के साथ। 

Unsecured वाईफाई नेटवर्क पर वेब सर्फिंग करना या फिर ट्रांजैक्शन करने का मतलब है अपनी प्राइवेट इंफॉर्मेशन और ब्राउजिंग हैबिट्स को एक्सपोज कर देना। वैसे सोचने में ही है इतना डेंजरस लगता है, लेकिन VPN यानी “Virtual Private Network” पब्लिक नेटवर्क इस्तेमाल करते समय आपको प्रोटेक्टेड नेटवर्क कनेक्शन प्रोवाइडर कराता है।

VPN आपके इंटरनेट ट्रैफिक को एंक्रिप्ट करता है और आपकी ऑनलाइन आईडेंटिटी को हाइड कर देता है। ऐसे में थर्ड पार्टीज के लिए आपकी ऑनलाइन एक्टिविटीज को ट्रैक करना और आपका डाटा चुराना मुश्किल हो जाएगा। 

VPN आपके कंप्यूटर, मोबाइल को server कंप्यूटर पर कनेक्ट करता है और आप उस कंप्यूटर के इंटरनेट कनेक्शन का यूज करके इंटरनेट पर ब्लाउज कर सकते हैं। VPN लीगल होते हैं और इनका यूज पूरी दुनिया में इंडिविजुअल भी करते हैं और कंपनियां भी कर दी है ताकि अपने डाटा को हैक होने से प्रोजेक्ट किया जा सके। Read also: Top 15 YouTube Shorts Videos Ideas For 2021 in Hindi

इसका यूज ऐसी कंट्री में भी किया जाता है जहां पर highly restricted गवर्मेंट होती है। Virtual Private Network के बारे में इतना जान लेने के बाद यह तो समझ में आ ही गया होगा कि पब्लिक नेटवर्क पर अपनी ऑनलाइन सिक्योरिटी के लिए इसका यूज किया जा सकता है। लेकिन यह काम कैसे करता है चलो देखते है। 

VPN काम कैसे करता है?

जब आप एक सिक्योर VPN सर्वर पर कनेक्ट होंगे तो आपका इंटरनेट ट्रैफिक एक encrypted टनल से गुजरता है, जिसे कोई नहीं देख सकता यानी न ही हैकर, सरकार और आपका इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर। इसे इस्तेमाल करने पर अपने डेटा को read नहीं किया जा सकता। यह कैसे काम करता है इसे समझने के लिए दो सिचुएशन देखते हैं,

VPN के साथ 

जब हम बिना VPN के वेबसाइट का एक्सेस लेते हैं तो उस इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर ISP के जरिए साइट पर कनेक्ट कर पाते हैं। ISP हमें एक यूनिक IP Address देता है, लेकिन क्योंकि ISP ही हमारा पूरा ट्रैफिक डायरेक्ट और हैंडल करता है वह उन वेबसाइट का पता लगा सकता है जिन पर हम विजिट करते हैं। तो ऐसे में हमारी प्राइवेसी सिक्योर कहां हुई?

VPN के बिना

जब हम VPN के साथ इंटरनेट से कनेक्ट होते हैं तो हमारी डिवाइस पर जो इसका App होता है उसे VPN क्लाइंट भी कहा जाता है और वह Virtual Private Network के सर्वर से सिक्योर कनेक्शन इस्टैबलिश्ड करता है। हमारा ट्रैफिक अभी भी ISP के से होकर गुजरता है, लेकिन ISP ट्रैफिक की फाइनल डेस्टिनेशन नहीं देख पाता। जिन वेबसाइट पर हम visit करते हैं वह हमारा original आईपी एड्रेस नहीं देख पाती। 

मतलब जब आप इसके server से connect होते है तो जिस साइट को आपने visit किया है उस पर आपका IP address नहीं जाता बल्कि इस server का जाता है जिसे आपने connect किया है। आपका ip छुपा दिया जाता है और आगे उस server के ip को भेजा जाता है। जिससे आपकी details आगे जाती ही नहीं, सामने वाले को पता ही नही चलता की visit किसने किया है, उसे इस server का ip मिलता है ना की आपका। Read also: क्या ब्लॉग्गिंग Dead हो चुकी है 2021?

VPN की जरूरत क्यों पड़ी?

VPN को सबसे पहले 1996 में माइक्रोसॉफ्ट ने बनाया था, ताकि रिमोट employees यानि कि ऐसे employee जो उस ऑफिस में बैठकर काम नहीं करते बल्कि उसके बाहर रहते हुए कहीं से भी काम करते हो वह employees कंपनी के इंटरनेट का secure एक्सेस ले सके। लेकिन जब ऐसा करने से कंपनी की प्रोडक्टिविटी डबल हो गई तो बाकी कंपनियां भी इसे अडॉप्ट करने लग गई। 

हमें VPN का यूज़ कब करना चाहिए?

इसका जवाब है अगर प्राइवेसी आपके लिए बहुत इंपॉर्टेंट है तो आपको हर बार इंटरनेट से कनेक्ट करते समय VPN का यूज करना ही चाहिए। लेकिन फिर भी कुछ सिचुएशन ऐसी होती है जिनमें आपको इसका यूज करना ही चाहिए। जैसे Streaming के समय, Travelling के समय, Public WiFi इस्तेमाल करते समय, Gaming करते समय और Shopping करते समय। यह काम कैसे करता है और इसका कब इस्तेमाल करना चाहिए ये तो हमने देख लिया, अब देखते है इसके कितने टाइप होते है। 

VPN के कितने टाइप होते है?

VPN के दो बेसिक टाइप होते हैं Remote Access VPN और Site-to Site VPN. 

Remote Access VPN के जरिए यूजर्स दूसरे नेटवर्क पर एक प्राइवेट encryption टनल के जरिए कनेक्ट हो पाते हैं। इसके जरिए कंपनी के इंटरनेट server या public internet से कनेक्ट हुआ जा सकता है। 

Site-to Site VPN को Router to Router VPN भी कहा जाता है। इस टाइप का यूज़ ज्यादातर corporate environment में किया जाता है। खास कर जब एक एंटरप्राइज कई डिफरेंट लोकेशंस पर हैडक्वाटर्स होते हैं, ऐसे में Site to Site ऐसा क्लोज इंटरनल नेटवर्क क्रिएट कर देता है जहां पर सभी लोकेशन एक साथ कनेक्ट हो सके, इसे इंट्रानेट कहा जाता है। 

इससे होने वाले बेनिफिट को एक साथ देखे तो इसके इस्तेमाल से आपकी ब्राउजिंग हिस्ट्री, आईपी एड्रेस, लोकेशन, स्ट्रीमिंग लोकेशन, डिवाइस और वेब एक्टिविटी हाइट हो जाती है। लेकिन बेनिफिट्स के साथ इसके कुछ कमिया भी है जैसे Slow Speed, No cookie protection और Not total privacy. 

इतना secure होने के बावजूद VPNs को Privacy Provider नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह हैकर सरकार ISP से तो डाटा को हाइड कर सकता है लेकिन खुद इसे प्रोवाइड करने वाले चाहे तो आपकी details देख सकते है। ऐसे में भरोसेमंद VPNs का ही इस्तेमाल करना चाहिए। 

क्या VPN को किसी भी डिवाइस से Connect किया जा सकता है?

हां, ऐसे सभी डिवाइसेज जो इंटरनेट से कनेक्ट हो सकती है उनमें VPN का यूज़ हो सकता है और ज्यादातर प्रोवाइडर मल्टीपल प्लेटफार्म पर यह सर्विस दिया करते हैं। जैसे लैपटॉप्स, टैबलेट्स, स्मार्टफोंस, वॉइस असिस्टेंट, स्मार्ट अप्लायंसेज और स्मार्ट टीवी पर। बहुत से टॉप प्रोवाइडर अपने VPN का free version प्रोवाइड कराते है। लेकिन free version के लिमिटेशंस हो सकती है, जैसे कि डाटा लिमिट। जब की कुछ VPN प्रोवाइडर्स paid version का free trial प्रोवाइड कराते हैं। 

ऐसे में VPN लेते समय बजट देखा जाना तो अच्छी बात है, लेकिन इतना जरूर ध्यान रखना चाहिए की वह आपको बेसिक फीचर्स तो जरूर से प्रोवाइड कराता हो, जो है प्राइवेसी। 

इंडिया के लिए कुछ टॉप VPN कौनसे है?

  1. ExpressVPN 
  2. Surfshark 
  3. NordVPN 
  4. ProtonVPN 
  5. IPVanish 

यह कुछ टॉप VPN है जो trusted सर्विस देते है। 

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