प्राचीन भारत के 5 महान वैज्ञानिक कौन थे?

प्राचीन भारत के 5 महान वैज्ञानिक जिनके सामने यूरोपियन कुछ भी नहीं है। प्राचीन भारतीय इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जिस पर हम गर्व महसूस करते हैं। प्राचीन समय में भारत के लिखे कई वैज्ञानिक ग्रंथों का उल्लेख इतिहास में मिलता है। हालांकि कभी-कभी सही वैज्ञानिक सिद्धांत सदियों तक अपनाए नहीं जाते उन्हें खोजने वाले वैज्ञानिक लंबे समय तक गुमनाम और उपेक्षित रहते हैं। विज्ञान के इतिहास में इस तरह के उदाहरण मिलते हैं जिनमें भारत के कई वैज्ञानिक गुमनामी में शामिल हैं। उन गुमनामी वैज्ञानिकों की रचनाओं को न तो हम संभाल कर रख पाए और न हीं उन पर शोध कर पाए। जो हमारी सबसे बड़ी बदकिस्मती है।

जिस पर सारी वैज्ञानिकी रचनाएं उस समय भारत में खोजी गई थी। जिस समय आधी दुनिया का चिंतन केवल खाना और पानी जुटाने तक सीमित था। हम यह नहीं कहते कि खोज सिर्फ हम ही ने की है, लेकिन हजारों साल पहले ऐसे सिद्धांतों को रखने वाले वैज्ञानिकों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। दोस्तों आज हम प्राचीन भारत के 5 महान वैज्ञानिकों के बारे में जानेंगे जिनकी प्रतिभा की चमक समय के साथ धुंदली तो हो गई लेकिन खत्म नहीं हुई। 

तो चलिए आज हम आपको बताएँगे कि कौन थे वो पांच भारत के महान वैज्ञानिक जिनके सामने यूरोपियन वैज्ञानिक कुछ भी नहीं। 

आर्यभट्ट

आर्यभट्ट की गिनती भारत के महानतम खगोल वैज्ञानिकों के रूप में की जाती है। उन्होंने उस समय ब्रह्मांड की जानकारी दुनिया के सामने रखी जिस समय दुनिया के लोग ठीक से गिनती गिनना भी नहीं जानते थे। आर्यभट्ट उस समय खगोल विज्ञान के प्रकांड पंडित थे। हालांकि दुनिया मानती हैं कि पृथ्वी और सूर्य के संबंध के बारे में सबसे पहले बताने वाला इंसान निकोलस कॉपरनिकस था। लेकिन आर्यभट्ट ने यह बात कॉपरनिकस से हजारों साल पहले बता दी थी और बताया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाती है। जहां बाकी ग्रह सूर्य का चक्कर अपनी अलग-अलग धुरी पर घूमते हुए लगाते हैं। यह बात आर्यभट्ट ने उस समय में बताई थी जिस समय यूनानी दार्शनिक अरस्तु का यह मानना था कि पृथ्वी केंद्र है और सूर्य के साथ बाकी ग्रह भी इसकी परिक्रमा करते हैं। 

इसके अलावा आर्यभट्ट को यह भी ज्ञात था की चंद्रमा और दूसरे ग्रह खुद की रोशनी से नहीं बल्कि सूर्य की रोशनी से चमकते हैं। खगोल विज्ञान के इस प्रकांड पंडित में पृथ्वी की परिधि का सही मान जानने की क्षमता थी। इसमें आज के हिसाब से बस 65 मील की अशुद्धि है। इतना ही नहीं आर्यभट्ट ने पृथ्वी के घूमने के हिसाब से समय को अलग-अलग भागों में भी बटा। उन्होंने सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग को सामान बताया है। उनके हिसाब से एक कल्प में 14 मन्वंतर है, एक मन्वंतर में 72 महायुग और एक महायुग में चार सतयुग त्रेता, द्वापर और कलयुग होते हैं। एक महायुग में पृथ्वी 1 अरब 57 करोड़ 22,37,500 बार घूमती है। इन सभी नियमों से आर्यभट्ट की बुद्धिमता का पता चलता है। लेकिन शून्य यानि 0 की खोज ने उन्हें विज्ञान के इतिहास में अमर कर दिया। शून्य जिसके बिना गणित की कल्पना करना भी मुश्किल है ऐसे महान वैज्ञानिक का भारतीय इतिहास हमेशा ऋणी रहेगा।

महर्षि कणाद

भारतीय इतिहास में महर्षि कणाद को शस्त्र का जनक माना जाता है। कणाद शस्त्र की अवधारणा के पितामह माने जाते हैं। आधुनिक दौड़ में अनु विज्ञानी जॉन डाल्टन के हजारों साल पहले कणाद ने ये बताया था कि देवयानी मैटर्स के आइटम होते हैं। कणाद लिखते है की भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्म अतिसूक्ष्म परमाणु की संगनन से होती है। आसान भाषा में कहें तो किसी भी फिजिकल मैटर का जन्म छोटी-छोटी परणु के मिलने से होता है। हलाकि वर्तमान में परणु सिद्धांत का जनक जॉन डाल्टन को माना जाता है। लेकिन उससे भी लगभग 900 साल पहले ऋषि कणाद ने वेदों में लेकिन सूत्रों के आधार पर परणु सिद्धांत की खोज की थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डीएन कोलॅबोरेट अपनी किताब में लिखते है कि एक समय था जब अनु शास्त्र में आचार्य कणाद और दूसरे भारतीय वैज्ञानिक यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में ज्यादा आ गए थे।

आज से 2600 साल पहले ब्रह्मांड का विश्लेषण शास्त्र के रूप में सूत्र पद ढंग से ऋषि कणाद ने अपने वैश्विक दर्शन में लिखा है। जिसमें कुछ मामलों में वह सिद्धांत आज के विज्ञान से भी आगे हैं। इसके अलावा महर्षि कणाद ने न्यूटन से पहले गति के तीन नियम भी बनाए थे की द्रव्य का पात्र के मैटर पर निर्मित और विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है और नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण नष्ट हो जाता है। इस प्राचीन सूत्र से पता चलता है कि महर्षि कणाद को गति और नियम का ज्ञान न्यूटन से भी पहले था। 

बोधायन

बोधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शाल्व शास्त्र के रचयिता थे। जिओमेट्री के विषय में प्रमाणित मानते हुए सारे विश्व में यूक्लिडियन जिओमेट्री पढ़ाई जाती है। मगर यह ध्यान रखना चाहिए यूनानी यूक्लिडियन जिओमेट्री से पहले ही भारत में कई गणितज्ञ ने जिओमेट्री के महत्वपूर्ण नियम की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बोधायन का नाम सबसे ऊपर है। उस समय भारत के ऐलजेब्रा जिओमेट्री को शाल्व शास्त्र कहा जाता था। हम सभी ने गणित में पाइथागोरस थ्योरी पढ़ी हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वास्तव में इसकी खोज पाइथागोरस ने नहीं बल्कि हमारे वैदिक ऋषि बोधायन ने की थी।

ऋषि बोधायन ने इस सूत्र की खोज पाइथागोरस से लगभग 2800 साल पहले ही कर ली थी। उनका सूत्र कुछ इस तरह से है कि एक आयत का विकर्ण उतना ही क्षेत्र इकट्ठा बनाता है जितने कि उसकी लंबाई और चौड़ाई अलग-अलग बनाती हैं। यानि किसी एक रैक्टेंगल की डायगोनल लाइन से बना एरिया उसकी लंबाई और चौड़ाई द्वारा अलग-अलग के एरिया योग्य के बराबर होता है। इस बात से साफ होता है किस प्रकार की जानकारी भारतीय गणितज्ञों को पाइथागोरस से पहले थी। 

भास्कराचार्य

भास्कराचार्य या भास्कराचार्य द्वितीय भारत की प्रसिद्ध गणितज्ञ और ज्योतिषी हैं। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि जिसमें लीलावती बीजगणित ग्रह गणित और गोल अध्याय नामक 4 भाग है। यह चार भाग अर्थमैटिक अलजेब्रा और ग्रहों की गति से संबंधित गणित पर आधारित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज का श्रेय न्यूटन को जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। न्यूटन के जन्म के 800 साल पहले ही भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जान लिया था और उन्हें अपने ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि में इसका उल्लेख भी किया है।

भास्कराचार्य लिखते हैं पृथ्वी आकाश के पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस प्रकार आकाशीय पिंड पृथ्वी पर गिरते हैं उन्होंने अपने गोल अध्याय नामक ग्रंथ में मध्य कृष्ण तत्वों के नाम से गुरुत्वाकर्षण के नियम की विस्तृत जानकारी दी है। भास्कराचार्य ने कारण कोतवाल नामक दूसरे ग्रंथ की रचना की, इस पुस्तक में खगोल विज्ञान की करना है। इस ग्रंथ में उन्होंने बताया जब चंद्रमा सूर्य को ढंक लेता तो सूर्य ग्रहण और जब पृथ्वी चंद्रमा को ढक लेती है तब चंद्र ग्रहण होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था जब भारत के लोगों को दुनिया में सबसे पहले गुरुत्वाकर्षण चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण की सटीक जानकारी थी। यह ग्रंथ आज भी करंट बनाने के काम आता है। यह अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ भी थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों का अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में हो चुका है। भास्कराचार्य एक ऐसे वैज्ञानिक थे उनकी सोच अपने समय से सैकड़ों साल आगे थी। 

महर्षि सुश्रुत

महर्षि सुश्रुत शल्य चिकित्सा के आविष्कारक माने जाते हैं। 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसे कई प्रकार के जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। आधुनिक विज्ञान केवल 400 साल पहले से ही सर्जरी कर रहा है, लेकिन उसने 2600 साल पहले ही कर दिखाया था। उनके पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें पानी में उबालकर साफ करने के बाद प्रयोग किया जाता था। इनके द्वारा लिखित सुश्रुत संहिता ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में सुइया सहित इस सूची में 125 से ज्यादा सर्जरी के उपकरणों के नाम मिलते हैं और इस ग्रंथ में 300 से ज्यादा प्रकार के सर्जरी का उल्लेख मिलता है।

इनकी ग्रंथों का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, जिनका पूरे जगत में भरपूर लाभ उठाया गया है। उनका ज्ञान रूस भी पहुंचा और अँग्रेज़ मात्र 200 साल पहले उनकी प्लास्टिक सर्जरी की तकनीक को अपने यहां से ले गए और आगे विकसित किया। नागार्जुन नामक महान चिकित्सक शास्त्री ने सुश्रुत संहिता का संपादन कर उसे एक नया स्वरूप दिया है। यह ग्रंथ आज भी अनुसंधान का विषय है इन सभी खोजों के कारण महर्षि सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। 

Leave a Reply